निराला
का व्यवस्था से विद्रोह
+रमेशराज
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क्रान्तिकारी,
फक्कड़ और निर्भीक महात्मा कबीर के बाद यदि कोई कवि
उनके समतुल्य, व्यवस्था-विरोधी,
साहसी और नैतिक मूल्यों को सर्वोपरि मानकर,
उनकी स्थापनार्थ संघर्षरत रहा है तो वह नाम
है-महाप्राण सूर्यकांत त्रिापाठी ‘निराला’।
‘निराला’
एक ऐसे कवि हैं, जिन्होंने
गुलाम हिन्दुस्तान में अंग्रेजों के दमनचक्र में पिसती,
सिसकती, विलखती
जनता को जार-जार और तार-तार होते देखा है तो स्वतंत्रता के बाद के काल के शासकों
की वे कुनीतियां भी महसूस की हैं, जो
अंग्रेजों के साम्राज्य-विस्तार का आधार थीं। स्वतंत्र भारत के अपने ही शासन में,
अपने ही शासकों के चरित्र से अकेले ‘निराला’
का ही मोहभंग हुआ हो,
ऐसा तो नहीं कहा जा सकता है। रामधारी सिंह ‘दिनकर’,
सुमित्रानंदन पंत जैसे उनके समकालीन कवि भी
कांग्रेस और गांधीजी की कथित अहिंसा और थोथे समाजवाद के व्यामोह से छिटककर
वास्तविकता के उस धरातल पर आ जाते हैं, जहां आजादी और सामाजिक समरसता का सपना
चूर-चूर होकर बिखर जाता है। दिनकर कह उठते हैं-
‘‘
अबलाओं को शोक, युवतियों
को विषाद है
बेकुसूर
बच्चे अनाथ होकर रोते हैं
शान्तिवादियो!
यही तुम्हारा शांतिवाद है?’’
सुमित्रानंदन
पंत उस समय के कांग्रेसी चारित्रिक पतन को एक व्याधि के रूप में इस प्रकार उजागर
करते हैं-
‘‘
धिक यह पद-मद शक्ति मोह!
कांग्रेस
नेता भी मुक्त नहीं इससे
कुत्तों
से लड़ते कुत्सित भारत माता की हड्डी हित!
आज
राज्य भी अगर उलट दे जनता,
इतर
विरोधी दल के राजा इनसे अधिक
श्रेष्ठ
होंगे? प्रश्नास्पद!
क्योंकि
हमारे शोषित शोणित की यह नैतिक
जीर्ण
व्याधि है।’’
मुद्दा
चाहे भ्रष्टाचार का हो या आजादी के बाद आये कांग्रेस के उस असली शोषक,
अनैतिक, कायर
और भोगविलासी आचरण के उजागर होने का हो, जिसे
देखकर उस समय कई कवि आशंकित ही नहीं, क्षुब्ध
और आक्रोशित हो उठे थे, इन
कवियों से अलग ‘निराला’
की प्रतिक्रिया बेहद तीखी,
मारक और व्यवस्था के प्रति विद्रोह से भरी हुई,
उनकी कविताओं के माध्यम से स्पष्ट अनुभव की जा सकती
है। मुद्दा चाहे हरिदास मूंदड़ा के भ्रष्टाचार का हो या ‘हिन्दी-चीन
भाई-भाई’ के नारे के बाद हुए भारत
पर चीन के आक्रमण का, इन सभी
मुद्दों पर वे कांग्रेस की शासन-प्रणाली को असफल मानते हुए इसके लिये जिम्मेदार
केवल नेहरू को ठहराते हैं। प्रतीकों के माध्यम से ‘निरालाजी’
की सशक्त कलम से प्रसूत उनकी ‘बेला’,
‘नये पत्ते’ और
‘कुकुरमुत्ता’
शीर्षक रचनाओं में कांग्रेस की दोहरे चरित्र और
घृणित मानसिकता की झलक देखते ही बनती है। उनकी ‘कुकुरमुत्ता’
नामक रचना दलित वर्ग की प्रतिनिधि कविता है,
जिसकी व्यंग्यात्मक शैली उस शोषक चेहरे की पर्तें
उधेड़ती चली जाती है जो समाजवाद का मुखौटा लगाकर जन-जन के बीच लोकप्रिय और ग़रीब
जनता का सच्चा हितैषी बनना चाहता है। ‘निराला’
इस शोषक चेहरे की पहचान कराते हुए उसे इस प्रकार
धिक्कारते हैं-
अबे
सुन बे गुलाब
भूल
मत गर पायी
खुशबू,
रंगो-आब
खून
चूसा खाद का
तूने
अशिष्ट
डाल
पर इतरा रहा
कैपिटलिस्ट।
जिस
चारित्रिाक पतन से आज कांग्रेस गुजर रही है, उसका
वह निर्मम आचरण बढ़ती महंगाई, हवाला
कारोबार, 2 जी स्पेक्ट्रम,
आदर्श सोसायटी, काॅमनवेल्थ
गेम के घोटालों के रूप में सामने आ रहा है। कांग्रेस की जनता का शोषण कर अकूत
सम्पत्ति अर्जित करने की ललक या कुत्सित इच्छा को निराला ने नेहरूकाल में ही भांप
लिया था।
उत्पीड़न
का राज्य,
दुःख
ही दुःख
अविराम
घात-आघात
आह
उत्पात
निराला
की पक्षधरता आमजन के साथ रही। सत्ता के स्वार्थ, सम्मान
और पदकों की लालसा से परे वे जन के मन के क्रन्दन को वाणी देते रहे-
अपने
मन की तप्त व्यथाएं
क्षीण
कण्ठ की करुण कथाएं
निराला-रचित
कविता ‘वह तोड़ती पत्थर’
में दीन-दुखी निर्धन नारी का जो मार्मिक चित्र
उन्होंने प्रस्तुत किया है, उससे
सर्वहारा वर्ग के प्रति एक करुणामय झलक मिलती है-
वह
तोड़ती पत्थर
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर।
गुरु हथौड़ा हाथ
करती
बार-बार प्रहार
सामने तरुमालिका, अट्टालिका,
प्राकार।
उपरोक्त
कविता में जिस असमानता और निर्धन वर्ग की दीनता का जिक्र ‘निराला’
ने किया है, वह
असमान, असंगतिभरा विकास आज हमें
उदारीकरण की वैश्विक नीति के इस दौर में अपनाये जाने वाली आर्थिक नीतियों के रूप
में फलता-फूलता दिखायी दे रहा है। सत्ता के जनघाती चरित्र और पूंजीवादी गठजोड़ को
लेकर कविता के माध्यम से जो संकेत प्रसिद्ध कवि सुदामा पांडेय ‘धूमिल’
ने दिये थे कि -
‘‘देश
के वही आदमी करीब है,
जो
या तो मूर्ख है या गरीब हैं’
उनके
इस कथन का रहस्य आज राडिया टेपों के माध्यम से समझा जा सकता है। इसी तरह के
देशद्रोही चेहरों की पहचान महाप्राण सूर्यकांत त्रिापाठी निराला ने नेहरू-काल में
इस प्रकार बतायी है-
विप्लव
रव से शोभा पाते
अट्टालिका
नहीं हैं रे
आतंक-भवन।
निष्कर्षतः
निरालाजी अपनी रचनाओं में अपने तत्कालीन परिवेश का ही जिक्र नहीं करते,
वे उस दुराचार, पापाचार,
भ्रष्टाचार और देशद्रोह की ओर भी भविष्यवाणी-सी
करते महसूस किये जा सकते हैं, जो
वर्तमान में प्रधानमंत्री की अकर्मण्यता
और भ्रष्टाचारियों पर कोई कार्यवाही न करने के रूप में देखा जा सकता है।
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+रमेशराज,
15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
मो.-9634551630
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