Tuesday, August 9, 2016

एक अच्छे बाल साहित्यकार भी हैं रमेशराज +निश्चल




एक अच्छे बाल साहित्यकार भी हैं रमेशराज

+निश्चल 
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    रमेशराज जी से मेरा कोई बहुत पुराना या लम्बा परिचय नहीं है | लेकिन जितना भी परिचय है उसमें, उन्हें और जानने-समझने की जरूरत होती है | वे सामान्य वेश-भूषा वाले असाधारण व्यक्तित्व हैं | आप जब सासनीगेट के ईसानगर में, संकरी-सी गली में दुकानदारी करते देखेंगे तो आपको आश्चर्य ही होगा कि यह व्यक्ति इतने शोरगुल-व्यवधान में दूकानदारी के बीच भी इतना शांत रहकर साहित्य की साधना में रत है | आज जहाँ लोग बहुत बढ़िया स्टडीरूम बनवाकर और शानदार ऑफिसनुमा कमरे में बैठकर घंटों बर्बाद कर ढंग की एक रचना नहीं कर पाते, ऐसे में रमेशराज जी इन सब विषमताओं में अनेकानेक रचनाओं को यों ही रच डालते हैं |
    आप जब रमेशराज जी के पास जाते हैं तो उन्हें कई तरह से जानने का अवसर मिलता है | जब उनसे किसी विषय पर बात की जाये तो वे उस विषय को पूरी तरह से खंगाल देते हैं | चाहे साहित्य हो, राजनीति हो, क्रिकेट हो, सामाजिक विषय हो, इतिहास हो या और भी कुछ, उन्हें हर तरह का ज्ञान है, और उसके प्रति अपनी सटीक व स्पष्ट सोच भी है | रमेशराज जी को यूं तो मैं नाम से और कभी-कभार की मुलाकातों के आलावा ज्यादा नहीं जानता था | और इन सब मुलाकातों में मेरे मन में केवल यह छवि थी कि जैसे बहुत से कवि हैं, ऐसे ही एक कवि रमेशराज भी हैं | लेकिन ऐसा नहीं था | वो ऐसे आकाश हैं, जिसको जितना देखो, उतना ही विस्तृत-विशाल हो सकता है कि कुछ पाठकों को ऐसा लगे कि मै उनकी केवल तारीफ कर रहा हूँ | बल्कि ऐसा नहीं है, आप जब तक रमेशराज जी के साथ कुछ समय अनौपचारिक रूप से नहीं बिताएंगे, तब तक हो सकता है, ऐसा लगे |
    मैं बाल-रचनाकारों की पत्रिका ‘ अभिनव बालमन ‘ की प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली कार्यशाला के लिए किसी स्थायी रूप से सन्दर्भदाता की तलाश कर रहा था | ऐसे में रमेशराज जी को जब पत्रिका देने गया तो उनसे कुछ बातें हुईं | बातों ही बातों में बात ग़ज़ल पर आ गयी | क्यों कि मैं ग़ज़ल के बारे में बहुत से लोगों से जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करता रहा था सो मैंने भी इसके बारे में बात की | धीरे-धीरे रमेशराज जी की कुछ परतें मेरे सामने खुलीं और मुझे लगने लगा कि यह सज्जन मुझे जो चाहिए वो बता सकते हैं | इस तरह मेरा स्वाभाविक रूप से उनकी ओर रुझान हुआ | इसी दौरान मैंने उनसे कार्यशाला में कविता के लिए सन्दर्भदाता के रूप में उन्हें आने का आमन्त्रण दिया | सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा कि ये काम है तो मुश्किल, लेकिन करूंगा | इसके बाद उनसे मुलाकातें होती रहीं और वे ‘ अभिमन बालमन ‘ द्वारा आयोजित कार्यशाला सृजन-12 में अपनी गठिया की बीमारी और तेज गर्मी जिसमें 44 से 45 तक तापमान रहा, के बावजूद नियमित रूप से आये और बाल रचनाकारों को कविता की बारीकियां सिखायीं |                                                          
    कार्यशाला के बाद जब मैं थोड़ा जिम्मेदारियों से हल्का हुआ, तो अपनी रचनाओं की छायाप्रति लेकर उनके पास जा पहुंचा | रचनाओं का पुलिंदा मैं उनके पास छोडकर आ गया | एक दिन बाद उनका फोन आया कि भाई रचनाएँ परमार्जित करने का समय साथ बैठें तो बेहतर होगा | मैं तो जैसे यह चाह ही रहा था तो मैंने झट से हाँ कर दी | अब तो रमेशराज जी के साथ तीन-चार घंटे बैठकर चर्चा करने का , समझने, सीखने का अवसर मिलने लगा | मैं संतुष्ट था कि मुझे जिसकी तलाश थी, मैं उसे पा चुका था |
    इन चर्चाओं के दौरान रमेशराज के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानने को तो मिला ही, साथ ही साहित्य की विविध विधाओं के बारे में ईमानदारी से जानने और सीखने को मिला | इसतरह रोज की चर्चाओं और मार्गदर्शन के साथ जहाँ मेरी रचनाएँ परिष्कृत हो रहीं थीं, वहीं मैं भी अपने आप को परिष्कृत पा रहा था | रमेशराज जी की छंद पर जो पकड़ है और केवल पकड़ ही नहीं, जिस प्रकार से वे सामने वाले को समझाते हैं, उससे भी महत्वपूर्ण कि उसे संतुष्ट करते हैं, वो अपने आप में अभिनव है | वे जब रचनाओं पर अपने विचार देते हैं तो एक अच्छे सर्जन की तरह उसके खराब अंगों को न केवल निकाल देते है और उसके मूल स्वरूप को भी विकृत नहीं होने देते | वे आपको उपदेश नहीं देते, बल्कि आपके साथ में कलम लेकर साथ-साथ आपकी भावनाओं को महसूस कर, जैसा आप चाहते हैं, उसको सटीक ढंग से ठीक करने का माद्दा रखते हैं | इसी के साथ वे अपने ज्ञान को किसी पर लादते नहीं | बल्कि सहज भाव से वे आपको और आप उनको उनके विचारों को स्वीकार करते हैं | वे आत्म-प्रशंसा करने या करवाने वालों में से नहीं हैं, बल्कि हर सही बात को प्रखरता से रखते हैं | उनके साथ और रचना परिष्कार कराने के बाद आप यह महसूस करते हैं कि अब कोई भी इस रचना में दोष नहीं निकाल सकता | लेकिन इस सबके बावजूद वे सहज भाव से कहते हैं कि हो सकता है कुछ गड़बड़ी रह गयी हो |
    अपनी दूकान की प्रमुख व्यस्तताओं के अलावा वे दैनिक जागरण समाचार पत्र के चण्डीगढ़ संस्करण के लिए भी लेख लिखा करते हैं | उनकी निर्लिप्तता देखिए कि वे तमाम लेख जिनका कि उनको बाकायदा मानदेय मिलता है, के बावजूद उन्होंने कभी भी अपने प्रकाशित लेख वाला दैनिक जागरण मंगाकर संग्रह करने की कोशिश नहीं की | जबकि आजकल तो लोग अख़बार में नाम आने भर से उसकी कटिंग हाईलाइट करके अपने पास सुरक्षित कर लेते हैं |
    इस सबके साथ ही रमेशराज जी केवल अभ्यास ही नहीं करते वरन वे चिन्तन और शोध कर नयी बातें खोजते हैं | यह सब तर्क की कसौटी पर सम्पन्न होता है | तभी तो रसों के विविध रूपों का विश्लेषण करने के बाद उन्होंने एक नये रस-‘विरोधरस ’ की स्थापना की है |
    काव्य की विविध विधाओं पर आपका पूरा अधिकार है | यही नहीं आपने कुंडलिया, तेवरी, ग़ज़ल, दोहे आदि में नये-नये दुष्कर प्रयोग किये हैं | रमेशराज जी की एक खासियत यह और है कि वे अपनी रचनाओं में हिंदी के ही शब्दों का अधिकतर प्रयोग करते हैं | जहाँ आज कोई साहित्यकार आवश्यक हो न हो अन्य भाषाओँ के शब्दों का प्रयोग करते हैं, ऐसे में रमेशराज जी बड़ी सरलता और सहजता से हिंदी के शब्द सटीक ढंग से अपनी रचनाओं में पिरो देते हैं | उनकी यह खूबी उनके पास आने वालों को एक प्रमाण देती है कि अपनी भाषा में जब पर्याप्त शब्द-भंडार है तो कहीं और भटकने की आवश्यकता क्या है
    रमेशराज जी उन कार्यों को करने में आनन्द लेते हैं या ये कहा जाये कि जोखिम उठाते हैं, जिनको करने में शायद ही कोई लाभ प्राप्त हो | बाल रचनाकारों की पत्रिका ‘ अभिनव बालमन ‘ में हम बाल रचनाकारों की रचनाएँ प्रकाशित करते हैं | ऐसे में एक समस्या यह आती है कि कक्षा 6 या उससे ऊपर की कक्षाओं के बच्चों को यदि कहा जाये कि आप कविता की रचना करो तो वे किस प्रकार अपने भावों को कविता में पिरोयें ? ऐसे में रमेशराज जी से चर्चा हुयी और मैंने उनसे कहा कि ‘क्यों न आप बच्चों को कविता लिखने के गुर सिखाएं ?’ उन्होंने सहज भाव से इस प्रस्ताव को स्वीकार किया | जब उन्होंने पहली किश्त लिखी तो बोले-‘ वास्तव में यह कठिन कार्य है कि बच्चे के स्तर पर जाकर उसे यह सिखलाया जाये कि कविता की रचना कैसे की जा सकती है ?’ तब मैंने कहा कि ‘ यह काम केवल आप ही कर सकते हैं | वरना तो लोग यह सोचते हैं कि इतनी माथा-पच्ची इसके लिए करेंगे, उतनी देर में तो जाने कितनी रचनाएँ रचकर अपना भंडार बढ़ाएंगे और पुरस्कार की लाइन में जुगाड़ लगायेंगे |’ यहाँ एक बात और जोड़ना चाहूँगा कि जिस प्रकार स्वयं पढ़ना आसान है, अपेक्षाकृत किसी और को पढ़ाने के, ऐसे ही कविता रचने से अधिक किसी बच्चे को सिखाना दुष्कर है कि कविता किस प्रकार रची जा सकती है | क्योंकि यह कार्य केवल वही व्यक्ति कर सकता है जो न केवल बच्चों जैसा मन रखता हो बल्कि आचार्य जैसा ज्ञान भी रखता हो | इसी के साथ रमेशराज जी की नियमितता और तत्परता देखिये कि आज इस ‘ आओ बच्चो कविता सीखें ‘ स्तम्भ की पांच किश्तें प्रकाशित हो चुकी हैं और न जाने कितने बाल रचनाकार इस स्तम्भ से लाभान्वित हो रहे हैं | इस सबके पीछे एक बात और द्रष्टव्य है कि रमेशराज जी ऐसा इसलिए भी कर पाते हैं कि वे स्वयं भी एक अच्छे और चर्चित बाल रचनाकार हैं |
    बहुत कम लोगों को पता होगा कि लोग जब बाल साहित्य के बारे में ढंग से जानते भी नहीं थे, तब वे न केवल बाल कविताएँ रचा करते थे बल्कि उस समय की स्थापित बाल एवं अन्य प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रमुखता के साथ वे प्रकाशित भी हुआ करते थे | उनकी बाल कविताओं में बीस-पच्चीस साल पहले वो ताजगी और नयापन था, जो आज बड़े-बड़े बाल साहित्यकार बहुत कोशिश कर भी नहीं ला पाते हैं | उनकी रचनाओं में समानता, नैतिकता आदि के भाव इस प्रकार हैं कि बच्चे आसानी के साथ गाते-गाते, खेल-खेल में कविता के फूल को पकड़े हुए उसमें से नैतिकता, ज्ञान, सौहार्द्र आदि की खुशबू को महसूस कर प्रसन्न हो जाता है और यह खुशबू उसके मन में जाकर उसके व्यक्तित्व का निर्माण करने में सहायक होती है |
    रमेशराज जी के व्यक्तित्व के विविध पहलुओं में से एक पहलू है कि वे धैर्यवान बहुत हैं | वे रचना करते समय जल्दबाजी में कभी नहीं रहते | वे रचना-परिमाण बढ़ाने के बजाय रचना के परिणाम, प्रभाव और मूल्य पर विशेष ध्यान देते हैं | उनके तेवरी-शतकों में आप देख सकते हैं कि वे किस तरह, न केवल छंद बल्कि कथ्य से भी सबको आश्चर्यचकित कर देते हैं |
    रमेशराज जी की एक और विशेषता है कि वे केवल अपने ही बारे में नहीं सोचते बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी आगे बढ़ाने, सिखाने का भी प्रयास करते हैं | उनके साथ जो लोग रहे हैं, उनमें से कई आज अच्छे रचनाकार हैं और वे रमेशराज जी की ही तरह किसी पौप्यूलरटी या दिखावे के बिना अपने श्रेष्ठ रचनाकर्म में रत हैं | आप जब रमेशराज जी के पास जायेंगे तो अवश्य ही किसी न किसी की रचनाएँ उनकी पारखी नज़र में होंगी | इस तरह से वो जो अपना समय देकर औरों के समय को मूल्यवान बनाते हैं, वास्तव में उनका यह अमूल्य योगदान प्रणम्य है |
    कहा जाता है कि संसार में एक चीज़ ऐसी है जो आप एक से मांगते हैं तो हजार लोग देते हैं, वो है सलाह | किन्तु जो चीज़ रमेशराज जी से मिलती है, सच में वह हजारों में से एक है | एक अच्छा व्यक्ति जो सबके हितों की सोचता है, वो है रमेशराज |
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+निश्चल, सम्पादक-अभिनव बालमन, शारदायतन, पंचनगरी, सासनीगेट, अलीगढ़-202001, Mob.-9719007153

अतीत के झरोखों से ' रमेशराज ' +ब्रह्मदेव शर्मा




अतीत के झरोखों से ' रमेशराज '

+ब्रह्मदेव शर्मा
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          आदरणीय रमेशराज जी को याद करते हुए, ‘ नसीब में जिसके जो लिखा था...’ गीत गुनगुनाते हुए मैं आज अपने अतीत में अलीगढ़ की सड़कों पर सूखे पत्ते-सा विचरता महसूस कर रहा हूँ |
    पिता सरकारी नौकरी में थे अतः 12 वीं कक्षा तक का पूरा अध्ययन उन्हीं के साथ जगह-जगह विचरते हुए पूरा किया | कभी एक जगह टिककर पढ़ नहीं पाया | पिता सिद्धांतों से अटल और भ्रष्ट व्यवस्था में उनके तबादले भी अटल | खैर पिताजी के बारे फिर कभी | मेरे आदर्श, मेरे सिद्धांत, मेरे पिता !
    जब मै अलीगढ़ आया तो एक पौध की तरह ही अविकसित था | उस अविकसित पौध को सींचकर परिपक्व एवम् छायादार-फलदार वृक्ष बनाने में और अन्य पौधों व् वृक्षों से इतर स्वतंत्र पृष्ठभूमि तैयार करने में वैचारिक सिंचन का अभूतपूर्व कार्य सम्पादित किया भाई रमेशराज ने |
    हम लोग [ मैं, गजेन्द्र बेबस, अशोक तिवारी, विजयपाल सिंह आदि  ] साथी डी.एस. कॉलेज अलीगढ़ में एक साथ पढ़ रहे थे | रमेशराज जी बहुत पहले उस कॉलेज से अध्ययन कर चुके थे और साहित्य के क्षेत्र में स्थापित हो चुके थे | हमारी रमेशराज जी से मुलाकात एक गोष्ठी के दौरान डी.एस. कॉलेज में ही हुयी | हम भी उन दिनों विचारों को शब्दों में उतारने, पिरोने की कोशिश करते थे | उस गोष्ठी में देश के व् स्थानीय कई नामचीन कवियों- गोपालदास नीरज, डॉ. रवीन्द्र भ्रमर, रमेश रंजक, कुंवर बैचैन, किशन सरोज, डॉ. अमिताभ तथा अन्य कवियों ने भाग लिया | उसमे कविता-पाठ का सौभाग्य हमें भी प्राप्त हुआ | अमिताभ जी संचालन कर रहे थे | रमेशराज जी ने दो गीत पढ़े जिनकी पंक्तियाँ मुझे आज भी याद हैं-
एक-
फिर कटे सन्दर्भों से जोड़ गया दर्द
         ह्में किसी टहनी-सा तोड़ गया दर्द |
दूसरा- दो बहिनों के माध्यम से गरीब जनता की पीड़ा को व्यक्त करती रचना की पंक्तियाँ –
         मुद्दत हुयी मिली ना संग-संग
         रोटी औ’ तरकारी बहिना |
         अब तो खर्चे ही खर्चे हैं
 मुआ पांव है भारी बहिना |                                              
    शायद हम सबके सुख-दुःख पीड़ायें बिना भेद-भाव समान हैं, इसीलिए आप समझ सकते हैं कि मेरे जेहन में ये पंक्तियाँ अमिट क्यों हैं |
    रमेशराज जी अपना काव्य-पाठ करने के उपरांत मंच छोडकर हम साथियों के बीच आकर बैठ गये | उनके इस व्यवहार ने हमें चौंकाया | किन्तु बड़े भाई की तरह कंधे पर हाथ रखकर उन्होंने हमें सामान्य कर दिया | और फिर हमारे बीच ही बैठे रहे | कई बार आग्रह पर भी वे मंच पर नहीं गये | शायद उन्हें अपने जैसे मिजाज और सोच वाले साथियों को तलाश कर तराशना था | उनका हमारे साथ इस तरह बैठना, नहीं-नहीं गलत कह रहा हूँ, हमारे दिलों में चौकड़ी लगाकर बैठना था |
   मैं उनकी सहजता, सहृदयता, सज्जनता, ईमानदारी, संघर्षशीलता, सच्चाई, लगन और जीवन के प्रति नजरिया का बहुत सम्मान करता हूँ |  
उस गोष्ठी के बाद हम सभी साथी कई घंटे एक साथ बतियाते रहे | मन नहीं कर रहा था एक-दूसरे को छोड़ने का | तय हुआ निश्चित समय पर प्रतिदिन कहीं न कहीं गोष्ठी अवश्य रखी जाये | इसके बाद गोष्ठियों का दौर शूरू हुआ, जिसमें कविता गोष्ठियां, विचार-मंथन, पठन-पाठन, तेवरी आन्दोलन [ जो पहले से ही रमेशराज जी ने शुरू कर रखा था ] आदि पर चर्चा सार्थकता के साथ करना | इस सबका परिणाम यह हुआ कि- एक सशक्त सार्थक सोच का साहित्यिक ग्रुप तैयार | मुखिया रमेशराज | उन्हीं दिनों राष्टीय एकीकरण परिषद् की अलीगढ़ इकाई का गठन श्री मधुर नज्मी के द्वारा हुआ | जिसके अध्यक्ष श्री रमेशराज तथा सन्गठन मंत्री का दायित्व मुझ पर | हिन्दू-मुस्लिम साथियों ने मिलकर शहर में एक नया सम्वाद, नयी ऊर्जा का संचार पैदा कर दिया | लोग हमें सामाजिक एवम् साहित्यिक क्रियाकलापों के कारण जानने-पहचानने लगे |
यह सब रमेशराज जी के तेवरी आन्दोलन का प्रभाव था कि साहित्य में भी एक नये तेवर के साथ एक समूह का उत्थान हो रहा था | जिसके विचार शहीदेआजम भगतसिंह, सुभाषचंद्र बोस, आज़ाद, और बिस्मिल से मेल खाते थे | यदि तुलना की जाये तो हमारा ग्रुप आज के अरविन्द केजरीवाल की टीम के समक्ष था | अंतर सिर्फ मीडिया का है |
रमेशराज जी साहित्य में हरदम कुछ न कुछ नया करने का दम रखते हैं | उनके दिमाग में कोई नया विचार जगह बना ले तो उसे धरातल पर उतारने में देर नहीं लगाते | इसका उदाहरण अलीगढ़ नुमाइश में ‘कविता पोस्टर प्रदर्शनी है | उस दौर में ए.डी.एम. श्री मोहन स्वरूप, टी.आर. डिग्री कॉलेज के कला विभाग की श्रीमती शैफाली भटनागर, सुश्री मीना सिंह एवं कला की अनेक छात्राओं के सहयोग से राष्टीय एकीकरण परिषद् द्वारा एक बेहतरीन कविता पोस्टर प्रदर्शनी अलीगढ़ नुमायश में बहुत बड़े पंडाल में आयोजित की गयी | यह आयोजन बड़े ही उच्च स्तर पर प्रभावी रूप से सफल रहा | इसका सारा श्रेय रमेशराज जी के नेतृत्व को जाता है |
रमेशराज जी बहुआयामी व्यक्तित्व के मालिक होने के कारण हमसे भी गतिशीलता और सक्रियता की अपेक्षा रखते थे और आज भी रखते हैं | यह ग्रुप जो रमेश जी ने खड़ा किया था, कभी टूट नहीं सकता | बस समय और परिस्थितियों के कारण अलीगढ़ की सीमाओं से बाहर निकल कर विस्तार पा गया है | हम आज भी उनके ऋणी हैं कि उन्होंने साहित्य की सही सोच और समझ विकसित करने में हमें पूर्ण सहयोग किया | इन सबके अतिरिक्त सार्थक सृजन नाम से संस्था का संचालन, तेवरीपक्ष पत्रिका का सम्पादन-संचालन व् सूर्य का उजाला समाचार पत्र का साहित्यिक आयोजन आदि कार्य वे अकेले स्वयं करते हैं |
रमेशराज जी द्वारा ‘ विरोधरस ‘ की तार्किक, सार्थक और समयानुकूल निष्पत्ति साहित्य-क्षेत्र में नया कीर्तिमान है |
‘ अभी जुबां कटी नहीं ‘ ‘ कबीर जिंदा है ‘, ‘ इतिहास घायल है ‘ एवं तेवरीकार दर्शन बेज़ार की तेवरियों के संग्रह का सम्पादन आदि पर बहुत से प्रशंसनीय कार्य श्री रमेशराज जी द्वारा किये गये हैं |
रमेशराज जी का आत्मिक स्नेह हमेशा प्राप्त होता रहा है और भविष्य में भी होता रहेगा | उनके स्वस्थ और दीर्घायु जीवन की कामनाओं के साथ उन्हें दो स्वरचित पंक्तियाँ सादर समर्पित करता हूँ-
   हमारा हाथ थामे जब कदम दो-चार चलते हो
 हमें लगता है जैसे मुद्दतों से साथ चलते हो |                        


नव नवोन्मेषी साहित्य-साधक ‘ रमेशराज ’ +डॉ. रमेश प्रसून




नव नवोन्मेषी साहित्य-साधक ‘ रमेशराज ’ 

+डॉ. रमेश प्रसून
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   ‘ घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध ‘ कहावत अलीगढ़ [उ.प्र.] निवासी प्रबुद्ध साहित्यकार श्री रमेशराज पर पूरी तरह चरितार्थ है | निश्चित रूप से हिंदी साहित्य में उनकी विद्वता, उनके शोध एवं प्रगतिगामी प्रयोग विचारणीय ही नहीं बल्कि पर्याप्त मूल्यांकन की सार्थक अपेक्षा रखते हैं |
    आजकल जबकि कुछ साहित्यिक पुरोधा साहित्य अकादमी व अन्य संस्थाओं द्वारा प्रदत्त साहित्यिक पुरस्कारों को अपने संरक्षकों के मौन इशारों पर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर लौटाते हुए अपनी कुंठित-लुंठित मानसिकता का ओछा प्रदर्शन कर रहे हैं, तब क्या यह सिद्ध नहीं होता कि वास्तव में वे इन पुरस्कारों-सम्मानों को प्राप्त करने के सुपात्र कभी थे भी नहीं | विचार पर स्वतन्त्रता के नाम राजननीतिक प्रतिबद्धता का साहित्य में क्या काम ? ऐसी परिस्थितियों में मन विचलित होकर ऐसे विद्वान साहित्यकारों की खोज में भटकने लगता है, जिनकी रचनाधर्मिता में सार्वभौमिकता एवं मानवीय मूल्यों की अक्षुणता समाहित हो, जो किन्हीं राजनीतिक आश्रयों की अनुकम्पा के मोहताज कभी न रहे हों | तब दृष्टि अचानक ही श्री रमेशराज जैसे प्रबुद्ध, प्रगतिगामी एवं नव प्रयोगधर्मी तेवरीकार पर जाकर रुक जाती है | जिनके साहित्यिक कृतित्व का व्यापक मूल्यांकन अभी शेष है | उनकी गुणग्राह्यता के अवदान को आंशिक रूप से उभारकर प्रस्तुत करने का सौभाग्य ‘बुलंदप्रभा’ को प्राप्त हुआ है |
    उनके साहित्यिक कृतित्व के सन्दर्भ में संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि समुचित साधन एवं सुविधा से सुसम्पन्न न होते हुए भी साहित्य क्षेत्र में शास्त्रीय अध्ययन सहित उन्होंने जो मौन साधना की है, वह ठोस साहित्यिक प्रतिदान का अनुपम एवं अद्वितीय उदहारण है |
    उनके समग्र लेखन का सूक्ष्म अवलोकन करने पर संज्ञान में आता है कि वे मात्र प्रयोगधर्मी छांदस कवि ही नहीं बल्कि कहानीकार, निबन्धकार, समालोचक, समीक्षक, सम्पादक, प्रकाशक के साथ-साथ शास्त्रीय स्थापनाओं के उद्गाता तथा बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न हैं | उन्होंने अनेक पूर्वज एवं दिग्गज साहित्यकारों तथा महाकवि निराला, पन्त, प्रसाद, दिनकर, महादेवी आदि के गद्य-पद्य सृजन की सूक्ष्म मीमांसाएँ की हैं जो परम्परागत लीक से हटकर नवोन्मेषी विश्लेषण तथा तुलनात्मकता लिए हुए हैं |
    सम्पादक एवं प्रकाशक के रूप में अन्य अनेक संकलन-संग्रहों के अतिरिक्त विशेष-रूप से ‘ तेवरीपक्ष ’ जैसी तेवरयुक्त लघु पत्रिका का प्रकाशन-सम्पादन शामिल है |
    साहित्य-जगत में मुखर तेवरीकार के रूप में उनको पहचाना जाता है | ‘ तेवरी ’ को उन्होंने पूर्ण काव्य-विधा के रूप में सुस्थापित किया है | कुछ विद्वान ग़ज़लनुमा रचनाओं में ‘ तेवर ’ की अभिव्यक्ति को ही ‘ तेवरी ’ मान बैठे हैं | जबकि श्री रमेशराज ने ‘ तेवरी ’ को विशाल एवं व्यापक परिप्रेक्ष्य में काव्य की समस्त छांदस संस्तुतियों को एक विशेष ‘ तेवर ‘ [ जिसमें क्रोध, विरोध, असंतोष, अन्याय व् गरीबों के प्रतिकार इत्यादि भाव-अनुभाव सम्मिलित हैं ] के साथ प्रस्तुत किया है | उन्होंने ‘ तेवर ‘ को सीमित परिवेश से निकालकर व्यापक फलक प्रदान किया है | गीत-ग़ज़ल ही नहीं, दोहा, हाइकु, मुक्तक, चतुष्पदी, कुण्डलिया, घनाक्षरी आदि छंदों में दो-दो छंदों को जोड़-जोड़ कर, तोड़-तोड़ कर लघु एवं लम्बी तेवरियाँ प्रस्तुत करने के अनूठे एवं नवोन्मेषी प्रयोग किये हैं | ऐसे प्रयोग जो पूर्णतः प्रामाणिक हैं तथा उनसे पहले साहित्य में कभी किये ही नहीं गये | उनका साहित्यिक दृष्टिकोण एकदम आधुनिक सार्वभौमिक एवं सर्वव्यापक है | अन्य की तरह संकुचित एवं सीमित कदापि नहीं |
    इस सबसे बढ़कर विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि ‘ तेवरी ‘ के संवहन के लिए उन्होंने साहित्य में स्थापित नौ रसों को पर्याप्त एवं उपयुक्त नहीं माना है | इसके लिए उन्होंने प्रामाणिक रूप से अन्य ‘ रस ‘ अर्थात्      ‘ विरोधरस ‘ की निष्पत्ति की है | तथा ‘ विरोधरस ‘ को ही ‘ तेवरी ‘ के संवहन के योग्य माना है | ‘ विरोधरस ‘ की निष्पत्ति रौद्ररस, वीररस, करुणरस आदि से अलग रस मानकर की गयी है |
    इस अंक में इनके द्वारा रचित ‘ कविता क्या है ‘, ‘तेवरी क्या है ?’, ‘विरोधरस क्या है ?’ की विस्तृत आख्याओं सहित विविध प्रकार के तेवरी छंदों का आंशिक रूप प्रस्तुत किया है |
    ऐसी बहुमुखी एवं बहुआयामी प्रतिभा के धनी साहित्यकार की नवोन्मेषी दृष्टि की सृजनात्मकता को साहित्य-जगत के सम्मुख उनकी पूर्ण उपादेयता के साथ प्रस्तुत करना ‘ बुलंदप्रभा ‘ का मुख्य ध्येय है | निश्चित रूप से अन्य अहंकारी एवं राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के आश्रय में फलने-फूलने वाले पूर्वाग्रही साहित्यकारों की अपेक्षा रमेशराज जैसे नवोन्मेषी साहित्यकार, जो हिंदी को हिंदी साहित्य की जीवंत परम्परा को संजीवनी प्रदान करने के लिए प्रयासरत है, वास्तव में ये सरकारी, गैरसरकारी, राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मानों को प्राप्त करने के अधिकारी हैं |
‘ बुलंदप्रभा ‘ की ओर से हार्दिक अभिनंदन एवं दीर्घायु की कामना |
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+डॉ. रमेश प्रसून, सम्पादक-बुलंदप्रभा, 4/75, सिविललाइंस, टेलीफोन केंद्र के पीछे, बुलन्दशहर [उ.प्र.] मो.-९२५९२६९००७       

रमेशराज की कविता उनकी कला का कमाल‘ +डॉ. अनूप सिंह





रमेशराज की कविता उनकी कला का कमाल 

+डॉ. अनूप सिंह 

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    कवि और कविता का एक ऐसा अटूट रिश्ता है, जिसकी आजतक कोई भी आलोचक सटीक व्याख्या नहीं कर पाया है | अपने-अपने दृष्टिकोण के आधार पर सब अपना मत व्यक्त करते हैं | किसी को किसी की कविता में कुछ नज़र आता है, किसी को कुछ | कोई छंद के गीत गाता है तो कोई रस की मीमांसा करता है | कोई अलंकारों, उक्तियों के आधार पर अभिव्यक्ति खोजकर कवि एवं कविता का सौन्दर्य-बोध निरूपित करता है |
‘कविता करके तुलसी न लसे / कविता लसी पा तुलसी की कला ‘  
    हमारी समझ से कवि और कविता के सम्बन्ध में या ये कहें कि तुलसीदास तथा रामचरित मानस के सम्बन्ध में जिस किसी ने भी ये पंक्तियाँ गढ़ीं, उससे अधिक कवि एवं कविता के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता | ये पंक्तियाँ इतनी सटीक हैं कि किसी भी कवि की कविता पर इन्हें रखकर परखो तो तुरंत कवि और कविता का भाव-सौन्दर्य, कला-सौन्दर्य स्पष्ट उद्भाषित हो जायेगा |
    हम यहाँ तुलसी तथा ‘ रमेशराज ‘ की इन पंक्तियों द्वारा तुलना नहीं कर रहे, वरन यह कहना चाहते हैं कि ‘ रमेशराज ‘ की कविता उनकी कला का कमाल है | कला से ही कविता की पहचान है | जैसे तुलसी की कला से उनकी कविता श्रेष्ठ हो गयी, वैसे ही ‘ रमेशराज ‘ की कला से उनकी कविता श्रेष्ठता को प्राप्त हो गयी है |
    ‘ तेवरी ’ शब्द ‘ तेवर ‘ से बना है, जिसका अर्थ होता है-‘तिरछी नज़र, टेढ़ी दृष्टि तथा तीखापन ‘ | ‘ तेवरी ‘ विचारों के तीखे, तिक्त, कषैले शब्दों का व्यापार है | कवि रमेशराज अपनी कविता का वितान इसी ‘ तेवर ‘ को अपनाकर रचा है तथा हिंदी साहित्य की नूतन काव्य-विधा ‘ तेवरी ‘ का प्रचलन किया है, जो इनके मौलिक चिन्तन, गवेषणा शक्ति तथा भाव-सम्प्रेषणीयता को दर्शाता है |
    ‘ तेवरी ‘ विधा को साहित्य में स्थापित करने के उद्देश्य से रमेशराज जी ने कितना श्रम किया है, इसका अंदाजा हमें इनके समस्त लेखन को देखकर सहज ही हो जाता है | इनके व्यंग्य के अपने तेवर हैं, अपनी वक्रोक्ति है और अपनी ध्वन्यात्मकता है | यथार्थ का चित्रण करते हुए इनकी कविताएँ एक विशेष लय में चलती हैं | इनके छंदों का रचना-विधान इतना अनूठा और कलात्मक है कि इनके कला-सौष्ठव पर मुग्ध हुए बिना नहीं रहा जा सकता | प्रयोग-धर्मिता इनकी कविता की सबसे बड़ी विशेषता है | भावों के, छंदों के इतने नूतन प्रयोग इन्होने अपनी ‘ तेवरी ‘ में किये हैं कि इन्हें देखकर इनकी काव्य-प्रतिभा का सम्मान किये बिना नहीं रहा जा सकता |
    इन ‘ तेवरियों ‘ में अपने विशिष्ट मीटर, विशिष्ट पैमाने हैं तथा विशिष्ट विषय वैविध्य हैं | छांदस कविता का शतशः अनुपालन करते हुए इन्होंने आधुनिक छन्दमुक्त कविता का भ्रम तोड़ दिया है | प्रायः छांदस कविता के बारे में कहा जाता है कि वह आधुनिकता-बोध को सहजता के साथ व्यक्त करने में असमर्थ होती है | छंद में कवि बंधा हुआ रहता है | खुलकर अपनी बात नहीं कह पाता, किन्तु रमेशराज की तेवरियाँ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि छंद में भी कवि अपने को अबाध रूप से अभिव्यक्त कर सकता है | इसके लिए कवि में अपने कवि-कर्म के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध होकर औरों से पृथक रचने की इच्छा-शक्ति आवश्यक होती है |
    तेवरीकार रमेशराज में वह इच्छा-शक्ति कूट-कूट कर भरी दिखाई देती है, जिसके बल पर इन्होंने ‘ तेवरी ’ विधा का इतना बड़ा वितान खड़ा कर दिया है | कुछ तेवरियाँ देखिये-
बस आज दंगा देखिए,
हाथ में चाकू लिये गुण्डा-लफंगा देखिए।
गुम हुई भागीरथी अब,
आजकल बस बह रही है गटरगंगा देखिए।
देशद्रोही काम जिनके,
उन सभी के हाथ थामे हैं तिरंगा देखिए।
कल मिलेंगे फूल-पत्ती,
आजकल इस आस में हर पेड़ नंगा देखिए।
इन सियासी दीपकों पर,
कर रहा है प्राण न्यौछावर पतंगा देखिए।
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यारन की घातन में
जि़न्दगी गुजर गयी ऐसी कुछ बातन में।
भूख अश्रु-धार बीच
नींद कब आयी हमें, चाँद-भरी रातन में।
आज़ादी न जान सके
पले हम आजतक घूँसा और लातन में।
आजा यार गले मिल
बँटा-बँटा मत रह धर्म और जातन में।
ज्वालामुखी बन देख
जीना अब और नहीं मातन में-घातन में।
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बलम छोड़ हठ-‘छत हो गाटर-पटिया की
मेरी बात मान लै अब तू छत्ति तान लै टटिया की।

चोरी की बिजली संकट को लायेगी
ज्यादा दिन तक छुपी रहै सुन ये तरकीबन कटिया की।

बिछा चद्दरा हम-तुम सोयें धरती पर
अपने घर दामाद पधारौ करि जुगाड़ तू खटिया की।

बुरे दिनों का हल शराब से क्या निकले
फिर पी आयौ बालम पउआ तूने हरकत घटिया की।

सुन बच्चों के संग बलम मैं भी-तू भी
बता करैगौ फाँकें कितनी खरबूजे की बटिया की।
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हर तरफ आहों भरे मंजर बहुत हैं
दिख रहे चारों तरफ खंजर बहुत हैं। नैन जन के तर बहुत हैं।।
क्या पता बस्ती से आखिरकार पूछें
गुम हुए हैं आज घर में घर बहुत हैं। नैन जन के तर बहुत हैं।
दीखतीं जिस ओर भी रौशन दिशाएँ
उस तरफ अब रहजनी के डर बहुत हैं। नैन जन के तर बहुत हैं।
आ गये आदर्श की किन मंजिलों पर
कंठ में अपने अनैतिक स्वर बहुत हैं। नैन जन के तर बहुत हैं।
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यार जंग जारी रख
क्रन्तिकारी सोच के ये प्रसंग जारी रख |

लूटते हैं नेता आज
उनके विरोध में अंग-अंग जारी रख |

ज़िन्दगी है घाव-घाव
किन्तु मुस्कान के शोख रंग जारी रख |

जैसे तलवार चले
‘ तेवरी ’ के बीच में वो तरंग जारी रख |
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‘ बुलंदप्रभा ‘ के प्रस्तुत अंक में इनकी [ रमेशराज ] रचनाधर्मिता को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है | पाठक इनके विस्तृत रचना-संसार से परिचित हों, इनकी भाषा के तेवरों को जानें तथा इनकी ‘विरोधरस ’ की मौलिक अवधारणा के आलोक में इनकी चिन्तन-शक्ति का परिचय प्राप्त करें |
[ रमेशराज पर केन्द्रित ‘ बुलंदप्रभा’ जुलाई-सितम्बर-15 का सम्पादकीय ]
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डॉ. अनूप सिंह , चलभाष-9997562922