Monday, June 13, 2016

रमेशराज बहुआयामी रचनाकार + डॉ. गोपाल बाबू शर्मा




रमेशराज बहुआयामी रचनाकार

+ डॉ. गोपाल बाबू शर्मा
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   श्री रमेशराज बहुआयामी रचनाकार हैं, चर्चित तेवरीकार हैं और तेवरी-आन्दोलन के प्रखर उन्नायक भी | उन्होंने कहानी, लघुकथा, निबन्ध, व्यंग्य, हाइकु आदि के क्षेत्र में भी अपनी रचनाधर्मिता का परिचय दिया है | उनकी चार सम्पादित कृतियाँ ‘ अभी जुबां कटी नहीं ‘, कबीर जिंदा है ‘, इतिहास घायल है ‘ तथा ‘ एक प्रहार लगातार ‘ प्रकाशित हैं | हाल ही में प्रकाशित ‘ विचार और रस ‘, पुस्तक में उन्होंने रस-सम्बन्धी सिद्धांतों का विवेचन अपनी नयी उद्भावनाओं के साथ किया है | सद्यः प्रकाशित शोध कृति ‘ विरोधरस ‘ में परम्परागत रसों से अलग एक नये रस की खोज की है, जिसका स्थायी भाव ‘ आक्रोश ‘ बताया है | यह रस यथार्थवादी काव्य को रस की कसौटी पर परखने के सन्दर्भ में अति महत्वपूर्ण है |
   पुस्तक के शीर्षक को सार्थक करतीं संकलित बाल कविताएँ बच्चों में देश-प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना को उद्दीप्त करती हैं | जिसमें यह भावना हो, वह भारत-माँ के लिए अपने को मिटा तो सकता है, किन्तु गुलाम कहलवाना पसंद नहीं करेगा-
फांसी के फंदों को चूमें,
लिए तिरंगा कर में घूमें,
भारत-माँ हित मिट जायेंगे
किन्तु ग़ुलाम न कहलायेंगे |
हमारा राष्ट्रीय ध्वज ‘ तिरंगा ’ भारत की पहचान ही नहीं, उसकी आज़ादी और उसी का परिचायक भी है-
   अब परतंत्र नहीं है भारत
   करता है ऐलान तिरंगा |
   तिलक, सुभाष, लाजपत, बापू
   के सपनों की शान तिरंगा |
महाराणा प्रताप, शिवाजी, कबीर, रसखान, गौतम, गांधी, भगत सिंह, लालबहादुर शास्त्री आदि वीरों शहीदों और महापुरुषों को याद करते हुए, उनसे प्रेरणा लेते हुए अधर्म और अन्याय को कड़ी चुनौती दी गयी है –
   हर अन्यायी का सर कुचलें
   कर्म-वचन से लालबहादुर |
   हर दुश्मन की कमर तोड़ दें
‘ अब के हम से मत टकराना ‘ कविता में मित्रता में धोखा देने वाले चीन को खबरदार किया गया है –
   हम तुमसे तिब्बत ले लेंगे
   अपना ‘ शिव-पर्वत ‘ ले लेंगे |
   युद्ध-भूमि में गंवा चुके जो
   वापस वह इज्जत ले लेंगे |
मेहनत से न घबराने, औरों के हक़ का न खाने से और अपने श्रम के बलबूते देश फल-फूल सकता है –
   अपनी मेहनत पर जीते हैं
   औरों का हक़ कब खाते हम ?
   अपने श्रम के बलबूते ही
   खुशहाली घर-घर लाते हम |
बच्चों में यह भाव होना भी बहुत जरूरी है कि वे किसी से नफरत न करें, प्यार और सच्चाई को स्वीकारें तथा खिले फूलों की तरह देश के उपवन में अपनी मोहक मुस्कान बिखेरें-
   औरों को पैने त्रशूल हम
   मित्रों को मखमल की खाटें |
   हे प्रभु, इतना वर दो हमको
   फूलों-सी मुस्कानें बाँटें |
कविताओं में युग-बोध भी है | ‘ यह कश्मीर हमारा है ‘ कविता में कवि ने कश्मीर और आतंकवादी गतिविधियों की ओर ध्यान खींचा है | यथा-
   आतंकी गतिविधियाँ छोड़ो
   चैन-अमन से नाता जोड़ो,
   भोली जनता को मत मारो
   काश्मीर में ओ हत्यारो !
छोटे मीटर में रची गयी इन बाल-कविताओं की भाषा सरल और सुबोध है | अंततः ये कविताएँ अर्थ समझने, याद करने तथा गाये जाने में भी आसान हैं | सुंदर भावों के साथ काव्यात्मक अभिव्यक्ति इन कविताओं की अतिरिक्त विशेषता है | बाल कविताएँ महज मनोरंजक ही नहीं, ज्ञानवर्धक भी होनी चाहिए | वे इतनी सक्षम हो कि बच्चों की भावनाओं के लिए स्वस्थ विकास का मार्ग प्रशस्त कर सके | श्री रमेशराज के ये बालगीत इस दृष्टि से पूरी तरह आश्वस्त करते हैं | निसंदेह वे बधाई के पात्र हैं |
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डॉ. गोपाल बाबू शर्मा, 46, गोपाल विहार कालोनी, देवरी रोड, आगरा-उ.प्र.-282001  

मो.-09259267929  

Saturday, June 11, 2016

तेवरीकार रमेशराज किसी परिचय के मोहताज नहीं +डॉ. भगत सिंह



                 रमेशराज  
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तेवरीकार रमेशराज किसी परिचय के मोहताज नहीं

+डॉ. भगत सिंह
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 तेवरीकार रमेशराज का नाम हम सबके मध्य किसी परिचय का मुहताज नहीं है | फिर भी “साहित्यश्री” परम्परानुसार मैं इनका सूक्ष्म परिचय सबके सम्मुख रख रहा हूँ |
   श्री रमेशराज का पूरा नाम रमेशचन्द्र गुप्त है | इनका जन्म 15 मार्च 1954 को मथुरा रोड स्थित अलीगढ़ के ‘एसी’ गाँव में लोकसाहित्य के चर्चित कवि रामचरन गुप्त के परिवार में हुआ | पिताश्री गुप्त के साहित्यिक संस्कारों के बीच पले-बढ़े, हिंदी और भूगोल में स्नातकोत्तर श्री रमेशचन्द्र गुप्त साहित्य जगत में ‘रमेशराज’ के नाम से पहचाने जाते हैं | इनके प्रकाशित कवि-कर्म को निम्नांकित शीर्षक के मध्य बांटा जा सकता है –
1.सम्पादित कृतियाँ 2. स्वरचित कृतियाँ

      सम्पादित कृतियों में- ‘ अभी जुबां कटी नहीं’, ‘कबीर जिंदा है’, ‘इतिहास घायल है’ , ‘एक प्रहार : लगातार’ जैसे तेवरी-संग्रह हैं |
स्वरचित कृतियों में- ‘तेवरी में रस-समस्या और समाधान‘, ‘विचार और रस’, ‘विरोधरस’, काव्य की आत्मा और आत्मीयकरण’ में कवि की गूढ़ एवं गहन चिंतनशीलता से साक्षात्कार होता है | ‘ कविता क्या है’ आपकी आलोचनात्मक कृति है | श्री राज को प्रमुख ख्याति उनके कवि-कर्म के रूप में मिली है | ‘ऊधौ कहियो जाय’ तेवरी-शतक और लम्बी तेवरियों के रूप में तेवर-शतक-‘ दे लंका में आग’, ‘जै कन्हैयालाल की’, ‘घड़ा पाप का भर रहा’, ‘मन में घाव नये न ये’, ‘धन का मद गदगद करे’, ‘ककड़ी के चोरों को फांसी’, ‘मेरा हाल सोडियम-सा है’, ‘रावण कुल के लोग’, ‘अंतर आह अनंत अति’, और ‘पूछ न कबीरा जग का हाल’ नामक कृतियाँ हैं | ‘शतक ’ शीर्षक के अंतर्गत ‘जो गोपी मधु  बन गयीं’, ‘देयर इज एन ऑलपिन’, ‘नदिया पार हिंडोलना’ [दोहा शतक ], ‘मधु-सा ला’ [चतुष्पदी शतक ], ‘पुजता अब छल’ [हाइकु शतक ] जैसी कृतियों को समाहित किया गया है | मुक्तछंद कविता संग्रह के रूप में ‘ दीदी तुम नदी हो‘, ‘वह यानि मोहनस्वरूप’ शीर्षक से प्रकाशित कृतियाँ हैं | इसके अतिरिक्त ‘राष्ट्रीय बाल कविताएँ’ नामक बालगीत संग्रह भी है |
   राष्ट्रीय मंचों के साथ कवि ने अपनी रचनाओं का विभिन्न आकाशवाणी केन्द्रों से पाठ किया है | कवि रमेशराज को ‘उ.प्र. गौरव’, ‘तेवरी तापस’, ‘शिखरश्री’, ’परिवर्तन तेवरी-रत्न’, जैसी उपाधियों से भी सम्मानित किया जा चुका है | जैमिनी अकादमी से ‘सम्पादक रत्न’ , हिमालय और हिंदुस्तान फाउन्डेशन ने उनके प्रकाशन कार्य और लेखन पर सम्मान-पत्र दिया है |                
   राष्ट्रीय एकीकरण परिषद् की अलीगढ़ इकाई के पूर्व अध्यक्ष एवं सार्थक सृजन [ साहित्यिक संस्था ], संजीवन सेवा संस्थान [सामाजिक संस्था ] एवं उजाला शिक्षा एवं सेवा समिति के आप आज भी अध्यक्ष हैं | दैनिक जागरण समाचार पत्र में स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सम्बद्ध श्री रमेशराज ‘ तेवरीपक्ष ‘ त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का 30 वर्षों से सम्पादन कर रहे हैं |
   रमेशराज जी की रचनाशीलता बहुआयामी है | आलोचक, निबन्धकार, गीतकार, हाइकुकार, कहानीकार, लघुकथाकार, ग़ज़लकार एवं तेवरी विधा के संस्थापक सूत्रधार के रूप में इनकी विशिष्ट पहचान है |
   तेवरी के इस सारस्वत साधक के लिए डॉ. मधुर नज़्मी ने बड़ी सार्थक टिप्पणी की है –“ हिंदी नवगीत , हिंदी ग़ज़ल की स्थापना के लिए साहित्य में जो श्रम राजेन्द्र प्रसाद सिंह, डॉ. शम्भूनाथ सिंह और दुष्यंत कुमार ने किया, उसी अंदाज़ में रमेशराज ने ‘ तेवरी विधा’ के लिए श्रेष्ठ कार्य किया है और कर रहे हैं |
   रमेशराज का कवि अपने आस-पास की राजनीतिक, सामाजिक, साम्प्रदायिक विकृतियों और विसंगतियों को लेकर क्षुब्ध होता है | वह अपनी तेज-तर्रार तेवरियों से वर्तमान व्यवस्था बदलाव लाना चाहते हैं –
   जितने वे शालीन साथियो
   उतने ही संगीन सुनो, अब तो नया विकल्प चुनो |
   छल-प्रपंच के बल सारे खल
   कुर्सी पर आसीन सुनो, अब तो नया विकल्प चुनो |
वह इस सिस्टम को बदलना भी चाहता है और दुखियारों के आंसू भी पौंछना चाहता है-
   इस सिस्टम से लड़ना हमको
   अब जुल्मी पर वार करें, चलो दुखों के गाल छरें |
   इस निजाम की आज पीठ पर
   चाबुक जैसी मार करें, चलो दुखों के गाल छरें |
कवि जानता है, व्यवस्था-परिवर्तन आसान न हीं है, इसके लिए लड़ाई लम्बी चलनी है और इसके लिए वह तैयार भी है | रमेशराज की रचना-दृष्टि तीखापन, रोष, क्रोध या सामाजिक विकृतियों, विसंगतियों को ही नहीं दर्शाती,बल्कि मन की कोमल अनुभूतियों को भी लिए हुए है-
   नैन प्यारे ये तुम्हारे, चाँद-तारे-से प्रिये
   इस लड़कपन बंक चितवन में इशारे से प्रिये !
   प्यास देते आस देते खास देते रस-सुधा
   हैं अधर पर सुर्ख सागर के नज़ारे-से प्रिये ! 
इनकी रचनाएँ वक्रोक्ति और ध्वन्यात्मकता को प्रकट करने के साथ-साथ छान्दस अनुपालन के लिए भी पहचानी जाती हैं | इन्होने गीत ग़ज़ल ही नहीं, दोहा, हाइकु, के साथ-साथ दो-दो तीन-तीन छंदों को जोड़ या तोड़ कर लघु व लम्बी तेवरियाँ प्रस्तुत करने के अनूठे और नवोन्मेषी प्रयोग किये हैं | जनकछ्न्द जैसे नये छंद में लिखा है और स्वयं भी छंद के क्षेत्र में सर्पकुण्डली राज छंद जैसे अभिनव प्रयोग किये हैं |
   प्रयोगधर्मी कवि, कहानीकार, निबन्धकार, समालोचक, समीक्षक, सम्पादक, प्रकाशक, सबको जोड़कर रखने की सांगठिक शक्ति से पूर्ण, बाल व नव रचनाकारों को कविता की बारीकियों को सहजता से समझाकर उनमें  रचनाशीलता के अंकुरों को सींचकर फलदार वृक्ष बनाने की अद्भुत क्षमता से पूर्ण “विरोधरस ” को रस-विधान के अनुसार हिंदी साहित्य के सम्मुख रखने वाले इस कवि का रचना-कार्य पर्याप्त मूल्यांकन की सार्थक अपेक्षा रखता है |
   अलीगढ़ जनपद में जन्मे इस नवोन्मेषी रचनाकार रमेशराज को “ साहित्य-श्री “ सम्मान -2015 मिलने की हार्दिक बधाई |

-----------------------------------------------------------    डॉ.भगतसिंह, सचिव-सार्थक सम्वाद, 19/ 146, गाँधीनगर, अलीगढ़-20201             मोबा.-09917629444  

Wednesday, June 8, 2016

विलक्षण प्रतिभा के धनी रचनाकार हैं रमेशराज +ज्ञानेंद्र साज़



                   रमेशराज    
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विलक्षण प्रतिभा के धनी रचनाकार हैं रमेशराज

+ज्ञानेंद्र साज़
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श्री रमेशराज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं | ग़ज़ल के समानांतर एक नयी विधा तेवरी को स्थापित करने में लम्बे समय से जी-जान से जुटे हैं | ग़ज़लकारों की अतार्किक हठधर्मिता के चलते अब आपने कथित ग़ज़ल के शिल्प से इतर तेवरी का जो नया रूप प्रस्तुत किया है, यह रूप तेवरी को ग़ज़ल से बिलकुल अलग ही नहीं करता बल्कि तेवरी की नयी छंद-व्यवस्था को लेकर बहुत कुछ सोचने-विचारने पर भी मजबूर करता है | जैसे लम्बी तेवरी की शृंखला में आयी उनकी कृति ‘ घड़ा पाप का भर रहा ‘ में क्रमशः हर पहली पंक्ति में दोहा छंद और दूसरी पंक्ति में ताटंक छंद का प्रयोग कर हर तेवर को तैयार किया गया है | तेवर-शतक के  रूप में रची गयी एक लम्बी तेवरी का मार्मिक और रसाद्र रूप इस प्रकार है –
         जन-जन की पीड़ा हरे जो दे नवल प्रकाश
         जो लाता सबको खुशहाली, उस चिन्तन की मौत न हो |
    इसी पुस्तक के अंतिम पृष्ठ पर प्रकाशित “सर्पकुण्डली राज छंद ” पाठक को झकझोरता ही नहीं, रसविभोर भी करता है | श्री रमेशराज द्वारा ही अन्वेषित इस छंद में हर पद की आधी-आधी पंक्ति को उठाकर आगे की पंक्ति में रखकर तेवर बनाया गया है | इन तेवरों का अनुस्यूत रूप एक सम्पूर्ण तेवरी का निर्माण करता है | यह रचनाकर्म दुरूह अवश्य है किन्तु चित्ताकर्षक और अनुपम है –
अब दे रहे दिखाई सूखा के घाव जल में
सूखा के घाव जल में , जल के कटाव जल में |
जल के कटाव जल में , मछली तड़प रही हैं
मछली तड़प रही हैं , मरु का घिराव जल में |
मरु का घिराव जल में , जनता है जल सरीखी
जनता है जल सरीखी , थल का जमाव जल में |
थल का जमाव जल में , थल कर रहा सियासत
थल कर रहा सियासत , छल का रचाव जल में |
छल का रचाव जल में , जल नैन बीच सूखा
        जल नैन बीच सूखा , दुःख का है भाव जल में |
 नूतन छंदों और एक नये रस “विरोधरस” के अन्वेषक, तेवरी आन्दोलन के पुरोधा श्री रमेशराज निस्संदेह विलक्षण प्रतिभा के धनी रचनाकार हैं |
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+ज्ञानेंद्र साज़ , सम्पादक-जर्जर कश्ती , १७/२१२ , जयगंज, अलीगढ़-२०२००१  मोबा.-9219562656  

“बुलंदप्रभा” में आलोकित तेवरीकार रमेशराज +डॉ. अभिनेष शर्मा




“बुलंदप्रभा” में आलोकित तेवरीकार रमेशराज   

+डॉ. अभिनेष शर्मा
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   साहित्यिक पत्रिका “बुलंदप्रभा” का जुलाई-सितम्बर-2015 अंक तेवरीकार रमेशराज जी के साहित्य-सृजन को समेटकर शोभायमान है | इस अंक में तेवरीकार श्री रमेशराज ने  अपनी बात को स्पष्टरूप से रखकर साहित्याकाश में अपना स्थान और दैदीप्तमान कर लिया है |
    कविता को हर कवि अपने ही अंदाज में सजाता है, संवारता है और उसे गुनगुनाने का मौका देता है | तभी तो कविता सभी रसों में डूबकर इठलाती है और गद्य से ऊपर तरजीह पाती है | कभी कविता यथार्थ की वैतरणी पार करती है तो कभी विद्रोह की आग सुलगाती है | कभी जन की दुखाद्र पुकार सुनकर करुणरस में घनीभूत होती है तो कभी सौन्दर्य की अनुपम छटा बिखेरती है |
    तेवरी में अलग ही रस के दर्शन होते हैं और वह है-“विरोधरस” | हर तेवरीकार इसी रस को अपने-अपने दृष्टिकोण से शब्दांकित करने का अथक प्रयास करता है | तेवरीकार रमेशराज भी इस प्रयास में शत-प्रतिशत खरे उतरते हैं | उनका हर तेवरी-संग्रह विरोधरस में ओजस है | अलीगढ़ को तेवरी से  पहचान दिलाने वाले इस संघर्षशील व्यक्तित्व का हार्दिक धन्यवाद | धन्यवाद “ बुलंदप्रभा” के सम्पादकमंडल का भी जिसने साहित्य-मनीषी रमेशराज और उनके साहित्य पर आधारित अंक निकालकर साहित्य-जगत में उनकी रचनाधर्मिता खासतौर पर तेवरी और उनके द्वारा अन्वेषित  “ विरोधरस “ को विचार-विमर्श हेतु विद्वजनों के  सम्मुख रखा |
     आमजन की स्थिति आज जिस आक्रोश और बौखलाहट की विस्फोटक अवस्था में है, उसे शब्दों का पहनावा तेवरी के रूप में मिलता है | तेवरी के अतिरिक्त बुलंदप्रभा के इस अंक में श्री रमेशराज द्वारा रचित अन्य विधाएं जैसे ग़ज़ल, गीत, मुक्तक, दोहे, कुंडलिया, कहानी, लेख आदि को भी स्थान मिला है | इसके अतिरिक्त अनेक साहित्यकारों के रमेशराज के व्यक्तित्व और कृतित्व से संदर्भित आलेख हैं | उनसे जुड़े साहित्यकारों ने भी उनके अंदर के व्यक्ति से मुलाकात कराने में इन आलेखों में कोई कोताही नहीं बरती है | उनसे जितना जिसने पाया है, इन आलेखों में उसे सूद सहित लौटाया है |      बुलंदप्रभा के इस अंक से गुजरते हुए यह स्पष्टरूप से कहा जा सकता है कि रमेशराज जी को हर विधा में महारत हासिल है | हर विषय की गहरायी तक जाकर मन के उद्गारों को शब्दों में ढालने की कला की कसौटी पर आप पूरी तरह खरे उतरते हैं |
    अंक की महत्वपूर्ण उपलब्धि है श्री रमेशराज द्वारा अन्वेषित एक नए रस “विरोधरस ” की प्रस्तुति | विरोधरस के संचारी, स्थायी भाव, अनुभाव पर विस्तृत चर्चा की गयी है | साथ ही इस रस के रूप व प्रकार भी सूक्ष्मता के साथ समझाये गये हैं | सम्भवतः श्री राज ने तेवरी काव्य में रस की समस्या को हल करने के उद्देश्य से विरोधरस की साहित्य में स्थापना की है |
    तेवरी में चूंकि जन की पीड़ित दमित भावनाएं परिलक्षित होती हैं अतः इस विधा में बहने वाले आक्रोश और विरोध को हर आस्वादक ऐसे महसूस करता है जैसे उसके मन की ही बात की जा रही हो | अगर यह आम धारणा है कि क्रोध अँधा होता है , राज जी ने विरोधरस के माध्यम से इसी क्रोध को आँखें और कान प्रदान करते हुए बताया है कि विरोध हिंसा का पर्याय नहीं | अनीति और हिंसा का प्रतिरोधात्म्क स्वरूप विरोध है | एक तेवरीकार शब्दों को आक्रोश के साथ विरोधरस में डुबोकर ऐसे प्रस्तुत करता है कि उसकी तेवरी हर अनीति के प्रति असहमति जताने लगती है |
    रमेशराज का साहित्य अनेक पुष्पों से सजा सुवासित आलय है जिसे ‘ बुलंदप्रभा’ ने और बुलंदियों तक पहुँचाने का सत्प्रयास किया है |
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डॉ.अभिनेष शर्मा, देव हॉस्पिटल, खिरनी गेट , अलीगढ़

मोबा.-9837503132   

Sunday, June 5, 2016

रमेशराज ने दिलायी तेवरी को विधागत पहचान +विश्वप्रताप भारती

रमेशराज ने दिलायी तेवरी को विधागत पहचान  

+विश्वप्रताप भारती
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     रमेशराज छन्दबद्ध कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं | रस के क्षेत्र में “ विचार और रस “, “ विरोधरस “ नामक दो पुस्तकों के माध्यम से रस के क्षेत्र में जहाँ आपने रस को व्यापकता प्रदान की है , वर्तमान विचारशील कविता को रस से जोड़ा है | वहीं ग़ज़ल से रोमानी पक्ष से व्यवस्था विरोध के तेवर को अलग कर उसे तेवरी के रूप में स्थापित किया है  तथा हिंदी साहित्य में तेवरी के विधागत वैचारिक विमर्श को आगे बढ़ाया है |
रमेशराज ने तेवरी विधा को पहचान और स्थायित्व प्रदान करने के लिए “ तेवरीपक्ष ” पत्रिका के साथ साथ “ अभी जुबां कटी नही “, “कबीर ज़िन्दा है “, “इतिहास घायल है ” जैसे कई तेवरी संग्रहों का सम्पादन किया | हिंदी की प्रगतिशील जनवादी कविता में जिला अलीगढ से बहुत से नाम आगे आते हैं ,    उनमें रमेशराज शीर्षस्थ हैं | ये कहना गलत न होगा कि आलोचकों ने उनकी पुस्तकों को तो पढ़ा किन्तु उनकी चर्चा करने से कतराते रहे | उनकी इस चुप्पी के दौरान कुछ रचनाकारों ने तो तेवरी लिखने वालों को “तेवरीबाज़ ” तक कह डाला |
श्री रमेशराज अपनी लम्बी तेवरी (तेवर शतक ) “घड़ा पाप का भर रहा ” के माध्यम से एक बार फिर चर्चा में हैं |इस संग्रह की 100 से ऊपर तेवरवाली तेवरी को पढकर हर एक सामाजिक यह महसूस कर सकता है – “अरे ये तो हमारे मन की बात कह दी ” शायद तेवरीकार के लेखनकर्म की यही सफलता है | 
सामान्यतया कविता दूसरों को कुछ बताने के लिए लिखी जाती है जो मानवीयता के पक्ष की मुखर आवाज़ होती है | मानवीयता के स्तर पर कविता में जो भाव आते हैं वे अद्भुत होते हैं | रमेशराज की कविता (तेवरी ) में ये भाव एक बड़ी सीमा तक विद्यमान हैं –
तेरे भीतर आग है , लड़ने के संकेत
बन्धु किसी पापी के सम्मुख तीखेपन की मौत न हो |
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जन जन की पीड़ा हरे जो दे धवल प्रकाश
जो लाता सबको खुशहाली उस चिन्तन की मौत न हो |
दरअसल आज आदमी की ज़िन्दगी इतनी बेबस और उदास हो गयी है कि वह समय के साथ से , जीवन के हाथ से छूटता जा रहा है | सम्वेदनशून्य समाज की स्थिति तेवरीकार रमेशराज को सर्वाधिक पीड़ित करती है –
कायर ने कुछ सोचकर ली है भूल सुधार
डर पर पड़ते भारी अब इस संशोधन की मौत न हो |
समाज में जो परिवर्तन या घटनाएँ हो रहीं हैं वे किसी एक विषय पर केन्द्रित नहीं | घटनाओं के आकर प्रकारों में बीभत्सता परिलक्षित हो रही है | इन घटनाओं के माध्यम से नई अपसंस्कृति जन्म ले रही है फलतः लूट , हत्या , चोरी , बलात्कार , घोटाले , नेताओं का भ्रटाचार , सरकारी कर्मचारियों की रिश्वतखोरी  अब चरम पर हैं| रमेशराज के  इस विद्रूप को उजागर करने और इससे उबरने के प्रयास देखिये  –
लोकपाल का अस्त्र ले जो उतरा मैदान
करो दुआएं यारो ऐसे रघुनन्दन की मौत न हो |
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नया जाँचआयोग भी जांच करेगा खाक
ये भी क्या देगा गारन्टी कालेधन की मौत न हो |
कविता में भोगे हुए यथार्थ की लगातार चर्चा हुयी है लेकिन उसके चित्रण तक | दलित लेखकों ने अपने लेखन में जहाँ समस्याओं को उजागर किया है वहीं उनका समाधान भी बताया है | रमेशराज दलित नहीं हैं किन्तु उनका जन्म एक विपन्न परिवार में हुआ , इस नाते दलितों के प्रति उनकी तेवरियों में वही पीड़ा घनीभूत है, जो दलित लेखकों के लेखन में दृष्टिगोचर हो रही है |  
    निस्संदेह आज दलितों ने निरंतर प्रयास से अपना जीवन-स्तर बदला है | अपने लिए अनंत सम्भावनाओं का आकाश तैयार किया है | किन्तु समाज में अभी भी कुछ ऐसा है जिससे तेवरीकार आहत है-
पूंजीपति के हित यहाँ साध रही सरकार
निर्बल दलित भूख से पीड़ित अति निर्धन की मौत न हो |
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लिया उसे पत्नी बना जिसका पिता दबंग
सारी बस्ती आशंकित है अब हरिजन की मौत न हो |
    तेवरीकार ने आज़ादी की लड़ाई का चित्रण उन दोगले चरित्रों को उजागर करते हुए किया है, जिन्होंने आजादी के दीवानों की पीठ में छुरे घोंपे-
झाँसी की रानी लिए जब निकली तलवार
कुछ पिठ्ठू तब सोच रहे थे “ प्रभु लन्दन की मौत न हो” |
    कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के उपन्यास ‘गोदान’ के पात्र  ‘गोबर्धन’ के माध्यम से युवा आक्रोश को इस प्रकार व्यक्त किया है-
झिंगुरी दातादीन को जो अब रहा पछाड़
‘होरी’ के गुस्सैले बेटे ‘गोबरधन’ की मौत न हो |
    हिंदी साहित्य में नये-नये प्रयोग होते रहे हैं, आगे भी होते रहेंगे | कविता में “ तेवरी-प्रयोग “ एक सुखद अनुभव है जो सामाजिक सन्दर्भों से गुजरते हुए समसामयिक युगबोध तक ले जाता है | तेवरी की भूमिका कैसी है स्वयं तेवरीकार के शब्दों में अनुभव की जा सकती है-
इस कारण ही तेवरी लिखने बैठे आज
किसी आँख से बहें न आंसू , किसी सपन की मौत न हो |
    स्पष्ट है, तेवरी नयी सोच, नयी रौशनी लेकर आयी है | अन्य तेवरी शतकों की तरह ‘ घड़ा पाप का भर रहा ‘ की लम्बी तेवरी आँखें खोलने वाली है | आशा है, हिंदी साहित्य के लेखक तेवरी को स्वीकारने, संवारने में हिचकेंगे नहीं |           
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+विश्वप्रताप भारती , बरला, अलीगढ़

मोबा.-8445193301