नव
नवोन्मेषी साहित्य-साधक ‘ रमेशराज ’
+डॉ. रमेश प्रसून
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‘ घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध ‘ कहावत
अलीगढ़ [उ.प्र.] निवासी प्रबुद्ध साहित्यकार श्री रमेशराज पर पूरी तरह चरितार्थ है
| निश्चित रूप से हिंदी साहित्य में उनकी विद्वता, उनके शोध एवं प्रगतिगामी प्रयोग
विचारणीय ही नहीं बल्कि पर्याप्त मूल्यांकन की सार्थक अपेक्षा रखते हैं |
आजकल
जबकि कुछ साहित्यिक पुरोधा साहित्य अकादमी व अन्य संस्थाओं द्वारा प्रदत्त
साहित्यिक पुरस्कारों को अपने संरक्षकों के मौन इशारों पर पूर्वाग्रह से ग्रसित
होकर लौटाते हुए अपनी कुंठित-लुंठित मानसिकता का ओछा प्रदर्शन कर रहे हैं, तब क्या
यह सिद्ध नहीं होता कि वास्तव में वे इन पुरस्कारों-सम्मानों को प्राप्त करने के
सुपात्र कभी थे भी नहीं | विचार पर स्वतन्त्रता के नाम राजननीतिक प्रतिबद्धता का
साहित्य में क्या काम ? ऐसी परिस्थितियों में मन विचलित होकर ऐसे विद्वान
साहित्यकारों की खोज में भटकने लगता है, जिनकी रचनाधर्मिता में सार्वभौमिकता एवं
मानवीय मूल्यों की अक्षुणता समाहित हो, जो किन्हीं राजनीतिक आश्रयों की अनुकम्पा
के मोहताज कभी न रहे हों | तब दृष्टि अचानक ही श्री रमेशराज जैसे प्रबुद्ध,
प्रगतिगामी एवं नव प्रयोगधर्मी तेवरीकार पर जाकर रुक जाती है | जिनके साहित्यिक
कृतित्व का व्यापक मूल्यांकन अभी शेष है | उनकी गुणग्राह्यता के अवदान को आंशिक रूप
से उभारकर प्रस्तुत करने का सौभाग्य ‘बुलंदप्रभा’ को प्राप्त हुआ है |
उनके
साहित्यिक कृतित्व के सन्दर्भ में संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि समुचित साधन
एवं सुविधा से सुसम्पन्न न होते हुए भी साहित्य क्षेत्र में शास्त्रीय अध्ययन सहित
उन्होंने जो मौन साधना की है, वह ठोस साहित्यिक प्रतिदान का अनुपम एवं अद्वितीय उदहारण
है |
उनके
समग्र लेखन का सूक्ष्म अवलोकन करने पर संज्ञान में आता है कि वे मात्र प्रयोगधर्मी
छांदस कवि ही नहीं बल्कि कहानीकार, निबन्धकार, समालोचक, समीक्षक, सम्पादक, प्रकाशक
के साथ-साथ शास्त्रीय स्थापनाओं के उद्गाता तथा बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न हैं |
उन्होंने अनेक पूर्वज एवं दिग्गज साहित्यकारों तथा महाकवि निराला, पन्त, प्रसाद,
दिनकर, महादेवी आदि के गद्य-पद्य सृजन की सूक्ष्म मीमांसाएँ की हैं जो परम्परागत
लीक से हटकर नवोन्मेषी विश्लेषण तथा तुलनात्मकता लिए हुए हैं |
सम्पादक
एवं प्रकाशक के रूप में अन्य अनेक संकलन-संग्रहों के अतिरिक्त विशेष-रूप से ‘
तेवरीपक्ष ’ जैसी तेवरयुक्त लघु पत्रिका का प्रकाशन-सम्पादन शामिल है |
साहित्य-जगत
में मुखर तेवरीकार के रूप में उनको पहचाना जाता है | ‘ तेवरी ’ को
उन्होंने पूर्ण काव्य-विधा के रूप में सुस्थापित किया है | कुछ विद्वान ग़ज़लनुमा
रचनाओं में ‘ तेवर ’ की अभिव्यक्ति को ही ‘ तेवरी ’ मान बैठे हैं | जबकि श्री
रमेशराज ने ‘ तेवरी ’ को विशाल एवं व्यापक परिप्रेक्ष्य में काव्य की समस्त छांदस
संस्तुतियों को एक विशेष ‘ तेवर ‘ [ जिसमें क्रोध, विरोध, असंतोष, अन्याय व्
गरीबों के प्रतिकार इत्यादि भाव-अनुभाव सम्मिलित हैं ] के साथ प्रस्तुत किया है |
उन्होंने ‘ तेवर ‘ को सीमित परिवेश से निकालकर व्यापक फलक प्रदान किया है |
गीत-ग़ज़ल ही नहीं, दोहा, हाइकु, मुक्तक, चतुष्पदी, कुण्डलिया, घनाक्षरी आदि छंदों
में दो-दो छंदों को जोड़-जोड़ कर, तोड़-तोड़ कर लघु एवं लम्बी तेवरियाँ प्रस्तुत करने
के अनूठे एवं नवोन्मेषी प्रयोग किये हैं | ऐसे प्रयोग जो पूर्णतः प्रामाणिक हैं
तथा उनसे पहले साहित्य में कभी किये ही नहीं गये | उनका साहित्यिक दृष्टिकोण एकदम
आधुनिक सार्वभौमिक एवं सर्वव्यापक है | अन्य की तरह संकुचित एवं सीमित कदापि नहीं
|
इस
सबसे बढ़कर विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि ‘ तेवरी ‘ के संवहन के लिए उन्होंने
साहित्य में स्थापित नौ रसों को पर्याप्त एवं उपयुक्त नहीं माना है | इसके लिए
उन्होंने प्रामाणिक रूप से अन्य ‘ रस ‘ अर्थात् ‘ विरोधरस ‘ की निष्पत्ति की है | तथा
‘ विरोधरस ‘ को ही ‘ तेवरी ‘ के संवहन के योग्य माना है | ‘ विरोधरस ‘ की
निष्पत्ति रौद्ररस, वीररस, करुणरस आदि से अलग रस मानकर की गयी है |
इस
अंक में इनके द्वारा रचित ‘ कविता क्या है ‘, ‘तेवरी क्या है ?’, ‘विरोधरस क्या है
?’ की विस्तृत आख्याओं सहित विविध प्रकार के तेवरी छंदों का आंशिक रूप प्रस्तुत
किया है |
ऐसी
बहुमुखी एवं बहुआयामी प्रतिभा के धनी साहित्यकार की नवोन्मेषी दृष्टि की
सृजनात्मकता को साहित्य-जगत के सम्मुख उनकी पूर्ण उपादेयता के साथ प्रस्तुत करना ‘
बुलंदप्रभा ‘ का मुख्य ध्येय है | निश्चित रूप से अन्य अहंकारी एवं राजनीतिक
प्रतिबद्धताओं के आश्रय में फलने-फूलने वाले पूर्वाग्रही साहित्यकारों की अपेक्षा
रमेशराज जैसे नवोन्मेषी साहित्यकार, जो हिंदी को हिंदी साहित्य की जीवंत परम्परा
को संजीवनी प्रदान करने के लिए प्रयासरत है, वास्तव में ये सरकारी, गैरसरकारी,
राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मानों को प्राप्त करने के अधिकारी हैं |
‘ बुलंदप्रभा ‘ की ओर से हार्दिक
अभिनंदन एवं दीर्घायु की कामना |
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+डॉ. रमेश प्रसून, सम्पादक-बुलंदप्रभा,
4/75, सिविललाइंस, टेलीफोन केंद्र के पीछे, बुलन्दशहर [उ.प्र.] मो.-९२५९२६९००७
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