अतीत के झरोखों से ' रमेशराज '
+ब्रह्मदेव शर्मा
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आदरणीय
रमेशराज जी को याद करते हुए, ‘ नसीब में जिसके जो लिखा था...’ गीत गुनगुनाते हुए
मैं आज अपने अतीत में अलीगढ़ की सड़कों पर सूखे पत्ते-सा विचरता महसूस कर रहा हूँ |
पिता
सरकारी नौकरी में थे अतः 12 वीं कक्षा तक का पूरा अध्ययन उन्हीं के साथ जगह-जगह
विचरते हुए पूरा किया | कभी एक जगह टिककर पढ़ नहीं पाया | पिता सिद्धांतों से अटल
और भ्रष्ट व्यवस्था में उनके तबादले भी अटल | खैर पिताजी के बारे फिर कभी | मेरे
आदर्श, मेरे सिद्धांत, मेरे पिता !
जब
मै अलीगढ़ आया तो एक पौध की तरह ही अविकसित था | उस अविकसित पौध को सींचकर परिपक्व
एवम् छायादार-फलदार वृक्ष बनाने में और अन्य पौधों व् वृक्षों से इतर स्वतंत्र
पृष्ठभूमि तैयार करने में वैचारिक सिंचन का अभूतपूर्व कार्य सम्पादित किया भाई
रमेशराज ने |
हम
लोग [ मैं, गजेन्द्र बेबस, अशोक तिवारी, विजयपाल सिंह आदि ] साथी डी.एस. कॉलेज अलीगढ़ में एक साथ पढ़ रहे
थे | रमेशराज जी बहुत पहले उस कॉलेज से अध्ययन कर चुके थे और साहित्य के क्षेत्र
में स्थापित हो चुके थे | हमारी रमेशराज जी से मुलाकात एक गोष्ठी के दौरान डी.एस.
कॉलेज में ही हुयी | हम भी उन दिनों विचारों को शब्दों में उतारने, पिरोने की
कोशिश करते थे | उस गोष्ठी में देश के व् स्थानीय कई नामचीन कवियों- गोपालदास
नीरज, डॉ. रवीन्द्र भ्रमर, रमेश रंजक, कुंवर बैचैन, किशन सरोज, डॉ. अमिताभ तथा
अन्य कवियों ने भाग लिया | उसमे कविता-पाठ का सौभाग्य हमें भी प्राप्त हुआ |
अमिताभ जी संचालन कर रहे थे | रमेशराज जी ने दो गीत पढ़े जिनकी पंक्तियाँ मुझे आज
भी याद हैं-
एक-
फिर कटे सन्दर्भों से जोड़ गया दर्द
ह्में किसी टहनी-सा तोड़ गया
दर्द |
दूसरा- दो बहिनों के माध्यम से गरीब
जनता की पीड़ा को व्यक्त करती रचना की पंक्तियाँ –
मुद्दत
हुयी मिली ना संग-संग
रोटी
औ’ तरकारी बहिना |
अब
तो खर्चे ही खर्चे हैं
मुआ
पांव है भारी बहिना |
शायद
हम सबके सुख-दुःख पीड़ायें बिना भेद-भाव समान हैं, इसीलिए आप समझ सकते हैं कि मेरे
जेहन में ये पंक्तियाँ अमिट क्यों हैं |
रमेशराज
जी अपना काव्य-पाठ करने के उपरांत मंच छोडकर हम साथियों के बीच आकर बैठ गये | उनके
इस व्यवहार ने हमें चौंकाया | किन्तु बड़े भाई की तरह कंधे पर हाथ रखकर उन्होंने
हमें सामान्य कर दिया | और फिर हमारे बीच ही बैठे रहे | कई बार आग्रह पर भी वे मंच
पर नहीं गये | शायद उन्हें अपने जैसे मिजाज और सोच वाले साथियों को तलाश कर तराशना
था | उनका हमारे साथ इस तरह बैठना, नहीं-नहीं गलत कह रहा हूँ, हमारे दिलों में
चौकड़ी लगाकर बैठना था |
मैं
उनकी सहजता, सहृदयता, सज्जनता, ईमानदारी, संघर्षशीलता, सच्चाई, लगन और जीवन के
प्रति नजरिया का बहुत सम्मान करता हूँ |
उस
गोष्ठी के बाद हम सभी साथी कई घंटे एक साथ बतियाते रहे | मन नहीं कर रहा था
एक-दूसरे को छोड़ने का | तय हुआ निश्चित समय पर प्रतिदिन कहीं न कहीं गोष्ठी अवश्य
रखी जाये | इसके बाद गोष्ठियों का दौर शूरू हुआ, जिसमें कविता गोष्ठियां,
विचार-मंथन, पठन-पाठन, तेवरी आन्दोलन [ जो पहले से ही रमेशराज जी ने शुरू कर रखा
था ] आदि पर चर्चा सार्थकता के साथ करना | इस सबका परिणाम यह हुआ कि- एक सशक्त
सार्थक सोच का साहित्यिक ग्रुप तैयार | मुखिया रमेशराज | उन्हीं दिनों राष्टीय
एकीकरण परिषद् की अलीगढ़ इकाई का गठन श्री मधुर नज्मी के द्वारा हुआ | जिसके
अध्यक्ष श्री रमेशराज तथा सन्गठन मंत्री का दायित्व मुझ पर | हिन्दू-मुस्लिम
साथियों ने मिलकर शहर में एक नया सम्वाद, नयी ऊर्जा का संचार पैदा कर दिया | लोग
हमें सामाजिक एवम् साहित्यिक क्रियाकलापों के कारण जानने-पहचानने लगे |
यह
सब रमेशराज जी के तेवरी आन्दोलन का प्रभाव था कि साहित्य में भी एक नये तेवर के
साथ एक समूह का उत्थान हो रहा था | जिसके विचार शहीदेआजम भगतसिंह, सुभाषचंद्र बोस,
आज़ाद, और बिस्मिल से मेल खाते थे | यदि तुलना की जाये तो हमारा ग्रुप आज के
अरविन्द केजरीवाल की टीम के समक्ष था | अंतर सिर्फ मीडिया का है |
रमेशराज
जी साहित्य में हरदम कुछ न कुछ नया करने का दम रखते हैं | उनके दिमाग में कोई नया
विचार जगह बना ले तो उसे धरातल पर उतारने में देर नहीं लगाते | इसका उदाहरण अलीगढ़
नुमाइश में ‘कविता पोस्टर प्रदर्शनी है | उस दौर में ए.डी.एम. श्री मोहन स्वरूप,
टी.आर. डिग्री कॉलेज के कला विभाग की श्रीमती शैफाली भटनागर, सुश्री मीना सिंह एवं
कला की अनेक छात्राओं के सहयोग से राष्टीय एकीकरण परिषद् द्वारा एक बेहतरीन कविता
पोस्टर प्रदर्शनी अलीगढ़ नुमायश में बहुत बड़े पंडाल में आयोजित की गयी | यह आयोजन
बड़े ही उच्च स्तर पर प्रभावी रूप से सफल रहा | इसका सारा श्रेय रमेशराज जी के
नेतृत्व को जाता है |
रमेशराज
जी बहुआयामी व्यक्तित्व के मालिक होने के कारण
हमसे भी गतिशीलता और सक्रियता की अपेक्षा रखते थे और आज भी रखते हैं | यह ग्रुप जो
रमेश जी ने खड़ा किया था, कभी टूट नहीं सकता | बस समय और परिस्थितियों के कारण
अलीगढ़ की सीमाओं से बाहर निकल कर विस्तार पा गया है | हम आज भी उनके ऋणी हैं कि
उन्होंने साहित्य की सही सोच और समझ विकसित करने में हमें पूर्ण सहयोग किया | इन
सबके अतिरिक्त सार्थक सृजन नाम से संस्था का संचालन, तेवरीपक्ष पत्रिका का सम्पादन-संचालन
व् सूर्य का उजाला समाचार पत्र का साहित्यिक आयोजन आदि कार्य वे अकेले स्वयं करते
हैं |
रमेशराज
जी द्वारा ‘ विरोधरस ‘ की तार्किक, सार्थक और समयानुकूल निष्पत्ति साहित्य-क्षेत्र
में नया कीर्तिमान है |
‘ अभी
जुबां कटी नहीं ‘ ‘ कबीर जिंदा है ‘, ‘ इतिहास घायल है ‘ एवं तेवरीकार दर्शन बेज़ार
की तेवरियों के संग्रह का सम्पादन आदि पर बहुत से प्रशंसनीय कार्य श्री रमेशराज जी
द्वारा किये गये हैं |
रमेशराज
जी का आत्मिक स्नेह हमेशा प्राप्त होता रहा है और भविष्य में भी होता रहेगा | उनके
स्वस्थ और दीर्घायु जीवन की कामनाओं के साथ उन्हें दो स्वरचित पंक्तियाँ सादर
समर्पित करता हूँ-
हमारा हाथ थामे जब कदम दो-चार चलते हो
हमें लगता है जैसे मुद्दतों से साथ चलते हो |
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